A Ghazal by Rashid Fazli |
غزل
پھولوں پھولوں مہکے لیکن شبنم شبنم روۓ تو
کوئی کسی کی خاطر پہلے اپنے آپ کوکھوۓ تو
لوگ بہت تھے جب آئ تھی تنہائی کی کالی رات
اپنے آپ سے لپٹے لیکن گہری نیند بھی سوۓ تو
اپنے آپ سے لپٹے لیکن گہری نیند بھی سوۓ تو
اوسر بنجر کھیتوں میں سب رنگ کی کھیتی اگتی ہے
ایک سنہرا خواب آنکھوں میں لاکر کوئی بوۓ تو
ایک سنہرا خواب آنکھوں میں لاکر کوئی بوۓ تو
کن لوگوں کا دل پگھلا اور کن لوگوں پر آنچ آئ
دھوپ کے آنگن کے بچے سب خون کے آنسوروۓ تو
دھوپ کے آنگن کے بچے سب خون کے آنسوروۓ تو
کیسے کیسے کھیل تماشے دنیا میں اب ہوتے ہیں
دیکھنے والا خون میں لیکن اپنی آنکھ ڈبوۓ تو
دیکھنے والا خون میں لیکن اپنی آنکھ ڈبوۓ تو
راشد فضلی
ग़ज़ल
फूलों फूलों महके लेकिन शबनम शबनम रोये तो
कोई किसी की ख़ातिर पहले अपने आप को खोये तो
लोग बहुत थे जब आई थी तनहाई की काली रात
अपने आप से लिपटे लेकिन गहरी नींद भी सोये तो
अपने आप से लिपटे लेकिन गहरी नींद भी सोये तो
ऊसर बंजर खेतों में सब रंग की खेती उगती है
एक सुनहरा ख़ाब आँखों में लाकर कोई बोये तो
एक सुनहरा ख़ाब आँखों में लाकर कोई बोये तो
किन लोगों का दिल पिघला और किन लोगों पर आँच आई
धूप के आँगन के बच्चे सब ख़ून के आँसू रोये तो
धूप के आँगन के बच्चे सब ख़ून के आँसू रोये तो
कैसे कैसे खेल तमाशे दुनिया में अब होते हैं
देखने वाला ख़ून में लेकिन अपनी आँख डुबोये तो
देखने वाला ख़ून में लेकिन अपनी आँख डुबोये तो
राशिद फ़ज़ली
Ghazal by Rashid Fazli |